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________________ आया कि अपने कुलदेव का स्मरण-वन्दन करना चाहिए । अतएव उपलब्ध पुष्पादिक से पूर्ण निष्ठा एवं मनोयोग से वारंवार नमन-वन्दन आदि के द्वारा उसने कुलदेव की पूजा सम्पन्न की। उसकी नैष्ठिक भक्ति से प्रसन्नता सूचित करते हुए देववाणी हुई कि एक मात्र जीवित असीम परम चमत्कारिणी वीतराग श्री जिनेश्वर भगवान की भव्य मूत्ति-प्रतिमा है ।। ६५ ।। 0 मूलश्लोक :त्वया रीत्या पूज्या विगलितविषादेन मनसा , शिवं भद्रं यास्यत्यनुपदमसौ प्रोच्य निरगात् । कृतं सर्वं तेनाऽपि गतनिगडं यानमचहात् , इदं सर्वं सत्यं जिननिगदिते पश्यतु जनः ।। ६६ ॥ ॐ संस्कृतभावार्थ:-त्वमनया रीत्या प्रसन्न न चेतसा श्री जिनेश्वरदेवानां मूत्तिपूजां कुरु । अवश्यमेव परमं पदं मोक्षमवाप्स्यसि । इत्थं प्रोच्य भगवान् श्रीपादीश्वरः प्रतस्थे । श्रीभरतचक्री अपि प्रभोः कथनानुसारेण सर्व कृतवान् इति जैनशास्त्रेषु निबद्ध मास्ते । इति विश्वस्य शान्तेन चेतसा ग्रन्थावलोकनं कुरु सन्देहमपाकुरु ।। ६६ ।।
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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