SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वमनसा वाचा कर्मणा श्रद्धया च पूज्यते जिनप्रतिमा । एतत् सर्वं सत्यानुप्राणितं निजभ्रमान्धकारं दूरीकत्तु श्रीजैनागमशास्त्राणि जैनेतरवेद-वेदाङ्गानि शास्त्राणि चानुसन्धेयानि सर्वत्र मत्ति-प्रतिमापूजनस्य प्रामाणिक पारमार्थिक रहस्यमुद्घाटितमास्ते । देवाधिदेवश्रीजिनेश्वर भगवतः पूजा तु निःसन्देऽहं सर्वप्रकारेण पापताप-सन्तापान् दूरयति । निखिलानन्दं प्रकाशयति चान्तरीयम् ।। ६१ ।। * हिन्दी अनुवाद-परम श्रद्धास्पद श्रीजिनेश्वर भगवान की द्वादशपर्षदा के समान समुद्भासित दिव्य समवसरण जैनागम शास्त्रों में भी प्रसिद्ध है। प्रभु की प्रतिमा तथा उसकी पूजा पूर्णतया श्रीजैनागमशास्त्रीय प्रामाणिकता पर आधारित है। किंचिद् मात्र भी कपोलकल्पना का विषय नहीं है। देव, मनुष्य और तिर्यंच प्राणियों ने सदैव मन, वचन और काया से इस मूत्तिप्रतिमा की आराधना, पूजा तथा सेवाभक्ति आदि की है । यह सभी सत्य से अनुप्राणित है, अपनी भ्रान्ति के गहन अन्धकार को दूर करने के लिए आप जैन आगम शास्त्र तथा जैनेतर वेद-वेदाङ्ग इत्यादि का भी अनुशोलन कर सकते हैं। सर्वत्र मूर्ति प्रतिमा तथा उनकी पूजा प्रामाणिक एवं पारमार्थिक स्वीकृत है। देवाधिदेव -- ७६ --
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy