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श्रीवीतराग-जिनेश्वर भगवान की पूजा तो निःसन्देह समस्त प्रकार से पाप-ताप-सन्ताप को दूर कर अन्तरात्मा में निहित निखिल आनन्द को प्रकाशित करती है ।। ६१ ।।
[ ६२ ] - मूलश्लोकःजिनाधीशाः सर्वे सततजनतानन्दजनकाः , क्षयेऽष्टौ कर्माणां शिवसुखमनन्तं ह्य पगताः । ततो देवेन्द्राद्या वरसुरभिधूपादिवसुभिः , चितां भद्रां कृत्वा क्षितिमुखभवं देहमदहन ॥ ६२ ॥
+ संस्कृतभावार्थः-सर्वेऽपि तीर्थङ्कराः श्रीमज्जिनेश्वराः अखण्डानन्दकन्दप्रदाः सन्ति । यदा ते निजाष्टकर्मक्षयानन्तरं स्वकीयं भौतिकशरीररत्नं परित्यजन्ति, तदापि देवेन्द्रादयः सुरभितचन्दनादिकाष्ठैः चितां निर्मापयन्ति । चरमशरीरसंस्कारादिकं कुर्वन्ति ।
* हिन्दी अनुवाद-सभी तीर्थंकर श्रीजिनेश्वर भगवान समस्त प्राणिवर्ग को अखण्ड-आनन्द प्रदान करने वाले होते हैं। जब वे अपने प्रष्ट कर्मों का सर्वथा क्षय होने पर अपने भौतिक शरीर का परित्याग करते हैं, तब इन्द्रादि देव सुरभित चन्दन-धूप आदि पदार्थों की चिता