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________________ ॐ हिन्दी अनुवाद-समस्त बुद्धिमान् जीव जानते हैं कि चित्ताकर्षक मनोहर चित्र को देखकर सभी प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। भयंकर भूत, प्रेत, सिंह, व्याघ्र आदि के चित्र को देखकर भीति का अनुभव करते हैं । मधुर मुस्कान, यौवन से भरपूर युवती के चित्र को देखकर मोह का उदय, चित्त की अशान्ति, कामोत्तेजना-जागृति होती है। इसे भी सभी स्वीकार करते हैं। ठीक इसी प्रकार शास्त्रोक्त एवं स्वकीय अनुभव से भी मैं कहता हूँ कि प्रभु की जिनेश्वर भगवान की नितान्त कान्त शान्त प्रतिमा के दर्शन मात्र से अनिर्वचनीय शान्ति प्राप्त होती है ।। ६० ॥ [ ६१ ] । मूलश्लोकःप्रमारणीभूतेयं जिनपरिषदेषां च प्रतिमाः , सदा पूज्यन्ते स्माऽमर-मनुजनाथैः सहृदयः । इदं सर्वं सत्यं निखिलनिगम पश्यतु जनः , सपर्या देवानां दुरितदवदाहं शमयति ॥ ६१ ॥ संस्कृतभावार्थः-श्रीजिनेश्वरदेवस्य . परिषदिव दिव्य-समवसरणमागमेषु प्रथिततरम्। प्रभोः मूत्तिप्रतिमा पूजा च प्रामाणिकतां भजताम् । दिव्यैर्दैवर्नरैः
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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