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स्याद्वादबोधिनी-१६३
जन्म नहीं होता है। श्रीपतञ्जलि ने भी योगदर्शन में इस सत्य को उजागर करते हुए स्पष्ट लिखा है
_ 'मूल के रहने पर ही जाति, आयु और भोग रहते हैं।' अर्थात् क्लेशों के होने पर ही कर्मों की शक्ति फल दे सकती है। क्लेश के उच्छेद होने पर कर्म फल नहीं देते, जिस प्रकार छिलके से युक्त चावलों से तो अंकुर उत्पन्न हो सकते हैं, छिलका उतार देने से चावलों में उत्पादक शक्ति नहीं रहती, उसी प्रकार क्लेशों से युक्त कर्मशक्ति फल देती है, क्लेशों के नष्ट हो जाने पर कर्मशक्ति में विपाक नहीं होता है।
यह विपाक, जाति, आयु और भोग के भेद से तीन प्रकार का होता है । श्री अक्षपाद ने भी स्वीकार किया है'जिसके क्लेशों का क्षय हो जाता है, उसकी प्रवृत्ति बन्ध का कारण नहीं होती है।' इस प्रकार से श्री शिवराज ऋषि के मत का खण्डन हो जाता है, तथा अनन्त जीववाद की पुष्टि होती है।
'षड्जीवकायमिति ।' पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति तथा त्रस इन छः प्रकार के जीवों को 'षड्काय जीव' कहते हैं। जीवों का काय (शरीर) जीवकाय तथा छह जीवकायों का समूह अर्थ करने पर समाहार