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स्याद्वादबोधिनी-१७६ * श्लोकार्थ-दुर्नीति से पदार्थ सर्वथा सत् है, नय से पदार्थ सत् है तथा प्रमाण से पदार्थ कथंचित् सत् है-एतत् प्रकारक त्रिधा पदार्थज्ञान होता है।
हे प्रभो! श्रीजिनेश्वरदेव ! आपने अपनी यथार्थ दशिता का उपयोग कर 'नय और प्रमाण से पदार्थ ज्ञान होता है'-ऐसा लोकोपकारक वाक्य प्रतिपादित करके दुर्नयमार्ग का निराकरण कर दिया है, जिससे स्याद्वादात्मक समन्वयसूत्र का लाभ प्राप्त करके सभी का मार्ग निष्कण्टक हो गया है।
‘नय इति । किसी भी वस्तु का सापेक्ष रीति से निरूपण 'नय' कहलाता है। सभी वस्तुएँ अनन्त धर्मों वाली होती हैं। इन अनन्त धर्मों में से किसी एक धर्म की अपेक्षा से होने वाला वस्तु ज्ञान (पदार्थ ज्ञान) 'नय' कहलाता है। नय के माध्यम से वस्तु के एकांश का ज्ञान ही सम्भव होता है, सम्पूर्ण का नहीं। नय के सन्दर्भ में संग्रह श्लोकों का मनन आवश्यक है___"नगम नय के अनुसार विशेष रहित सामान्य ज्ञान का कारणभूत (वस्तुगत) सामान्य भिन्न होता है और विशेष भी भिन्न होता है ।। १ ।।