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स्याद्वादबोधिनी-१६३
भूतकार्य की उत्पत्ति करने में विरोध उपस्थित होता है । क्षणिक पदार्थ क्षण से अधिक स्थिरता नहीं धारण कर सकता है। अतः वह क्षणिकत्व से निवृत्त होकर, अन्य किसी की शरण के अभाव में नित्यत्व में सम्मिलित होता है। ___ यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि 'क्षणिक पदार्थ 'अस्ति' रूप होकर अपने कार्य का सम्पादन करता है या 'नास्ति' रूप होकर ? पहली बात ठीक नहीं है, क्योंकि प्रथम क्षण में उत्पन्न द्रव्य निर्गुण, निष्क्रिय होता है यह सिद्धान्त है। अतः निर्गुण, निष्क्रिय दशा में वह अर्थक्रियाकारिता नहीं कर सकता है ।
इसी प्रकार दूसरी बात भी ठीक नहीं है, क्योंकि 'नास्ति' रूप होने से प्रयोजन की सिद्धि सम्भव नहीं है ।
इस तरह 'नास्ति' रूप से यदि प्रयोजन-सिद्धि स्वीकार करें तो शशविषाण (गधे के सींग) आदि से भी प्रयोजन-सिद्धि का संकट खड़ा हो जायेगा क्योंकि वे भी नास्ति रूप, असद्रूप हैं।
अनित्यकान्तवादियों के मत में विश्व के सभी पदार्थ क्षणिक हैं, सद्रूप होने के कारण। अर्थक्रियाकारिता