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स्याद्वादबोधिनी-१५८ (३) प्रत्येक वस्तु वाच्य होने के कारण कथंचित् वाच्य है तथा अवाच्य होने के कारण अवाच्य भी है ।
(४) प्रत्येक वस्तु अस्तिरूप होने के कारण कथंचित् 'सत्' है, तथा नास्ति रूप होने के कारण कथंचित् 'असत्' भी है।
यह यथार्थ कथन रूप अनेकान्तवाद-परम्परा भी सुधाअमृत पान के उद्गार की सर्वमान्य परम्परा है। प्रत्येक पदार्थ में द्रव्याथिकनय की अपेक्षा से नित्य, सामान्य, अवाच्य, सत् तथा पर्यायाथिक नय से अनित्य, विशेष वाच्य, असत् की स्थिति सुतरां स्वीकार्य है ।। २५ ।।
[ २६ ] पुनरप्याचार्योऽभ्यस्तं स्वमार्ग सिंहावलोकनन्यायेन व्यनक्ति+ मूलश्लोकःय एव दोषा किल नित्यवादे,
विनाशवादेऽपि समस्त एव । परस्परध्वंसिषु कण्यकेषु,
जयत्यधष्यं जिनशासनं ते ॥ २६ ॥