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स्यावादबोधिनी-१५७
'अस्ति क्षीरा गौः' प्रयोग में 'अस्ति' पद क्रियावाचक न होकर विभक्ति प्रतिरूपक अव्यय है ।
दूसरी बात यह है कि-'स्याद्वाद' पद समास युक्त पद है। जिसका विग्रह होता है-स्याच्चासौ वादः स्याद्वादः । यदि यहाँ 'स्यात्' पद क्रियावाचक होता तो 'सहसुपा' नामक अधिकृत विधि सूत्र से समास से समास कैसे होता ? यह सूत्र सुबन्त का सुबन्त के साथ समास करता है, सुबन्त का तिङन्तपद के साथ समास नहीं करता। 'स्यात्' पद का अर्थ यहाँ 'अकेकान्त' समझना चाहिए। अतः अनेकान्तवाद अर्थ फलित होता है ।
प्रस्तुत श्लोक में 'स्यात्' पद का पाठों पदों के साथ योग है। अन्वय करते समय वह योग प्रदर्शित किया गया है। अतः फलितार्थ यह कथन है
(१) प्रत्येक वस्तु किसी अपेक्षा से विनाशीक होने के कारण कथंचित् अनित्य है तथा किसी अपेक्षा से अविनाशी होने के कारण कथंचित् नित्य है ।
(२) प्रत्येक वस्तु सामान्य रूप होने से कथंचित् सामान्य रूप है तथा विशेष रूप होने से कथंचित् विशेष रूप भी है।