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स्याद्वादबोधिनी-१४६ विशेष की एक साथ अभिन्न विवक्षा से जीव प्रवक्तव्य स्वरूप है। यथा-जीवत्व अथवा मनुष्यत्व की अपेक्षा प्रात्मा अस्तित्व स्वरूप है तथा द्रव्यसामान्य और पर्यायसामान्य की अपेक्षा वस्तु के भाव और अवस्तु के प्रभाव के एक साथ अभेद की अपेक्षा से प्रात्मा प्रवक्तव्य है ।
(६) स्यादस्ति च नास्ति जीवः-जीव कथंचित् नास्ति और प्रवक्तव्य रूप है। इस षष्ठ भंग में पर्यायाथिक उभयनय की प्रधानता है। जीव पर्याय की अपेक्षा नास्ति रूप है तथा अस्तित्व और नास्तित्व दोनों धर्मों की एक साथ अभेद अपेक्षा-विवक्षा से अवक्तव्यरूप
(७) स्यादस्ति च नास्ति चावक्तव्यश्च जीवः-जीव कथंचित् अस्ति, नास्ति और प्रवक्तव्य रूप है। जीव की द्रव्य की अपेक्षा से अस्ति, पर्याय की अपेक्षा से नास्ति और द्रव्य-पर्याय उभय की अपेक्षा से प्रवक्तव्य रूप स्थिति है।
यहां द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक उभय नयों की प्रधानता ओर अप्रधानता वर्णित है ॥ २३ ।।