________________
स्याद्वादबोधिनी-१४३
'सत् और असत् का विवेक न होने से कर्मों के सद्भाव से और ज्ञान के फल का अभाव होने से मिथ्यादृष्टियों को अज्ञान प्रावेष्टित करता है।'
सप्तभङ्गी का स्वरूप क्या है ? इस जिज्ञासा के समाधान के लिए क्रमशः सप्तभङ्गों का विश्लेषण इस प्रकार है
(१) 'स्यादस्ति जीव'-किसी अपेक्षा से जीव अस्ति रूप ही है। इस भङ्ग में द्रव्याथिक नय की प्रधानता और पर्यायार्थिक नय की गौणता है। अतः 'स्यादस्त्येव जीवः' का अर्थ है-किसी अपेक्षा से जीव के अस्तित्व-धर्म की प्रधानता और नास्तित्व धर्म की गौणता है। या जीव अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा विद्यमान है तथा परद्रव्य आदि की अपेक्षा नहीं । यदि जीव अपने द्रव्य आदि की अपेक्षा अस्ति रूप तथा परद्रव्य की अपेक्षा नास्ति रूप न हो तो जीव का स्वरूप नहीं बनेगा।
(२) स्यानास्ति जीवः-किसी अपेक्षा से जीव नास्ति रूप ही है। इस भङ्ग में पर्यायाथिक नय की प्रमुखता और द्रव्याथिक नय की गौणता है। जीव पर सत्ता के