________________
स्याद्वादबोधिनी-१४१ * श्लोकार्थ-सहभावी और क्रमभावी पर्यायों के सम्पृक्त होते हुए भी संक्षिप्त रूप से कथन की स्थिति में पर्याय अविवक्षित होने के कारण गौण रहते हैं। किन्तु विस्तर कथन में पर्यायों की प्रमुखता रहती है।
9 भावार्थ-सर्वज्ञविभु हे जिनेश्वरदेव ! प्रापने सकलादेश तथा विकलादेश के रूप में जो सप्तभङ्गी की प्ररूपणा की है, वह तो अविद्या की वासना से रहित अपक्षपाती विशेषज्ञ विद्वानों-पण्डितों द्वारा ही ज्ञातव्य (ज्ञेय) है।
. प्रत्येक वस्तु के द्रव्य, पर्याय और उभयरूप होने पर भी द्रव्यनय की मुख्यता से और पर्याय नय को गौणता से वस्तु का ज्ञान द्रव्यरूप होता है। पर्यायनय की मुख्यता और द्रव्यनय को गौरण स्थिति से वस्तु का ज्ञान पर्यायरूप होता है। द्रव्य तथा पर्याय दोनों की प्रमुखता के कारण वस्तु का ज्ञान द्रव्य-पर्याय-उभयात्मक होता है। इसीलिए पूर्वधर-वाचकप्रवर श्री उमास्वाति महाराज ने भी कहा है कि-'अपितानपितसिद्ध : [तत्त्वार्थ सूत्र, ५-३१] ।'
अर्थात् द्रव्य और पर्याय की मुख्यता और गौणता से वस्तु की सिद्धि होती है। कुछ जैनाचार्यों ने काल