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स्याद्वादबोधिनी-१३५
- भाषानुवाद - सर्वज्ञविभु श्रीअरिहन्त परमात्मा के द्वारा प्रतिपादित प्रामाणिक उपदेश कुतर्कवादियों को पराजित करने में समर्थ है । अतः कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराज कहते हैं
* श्लोकार्थ-प्रत्येक वस्तु में अनन्त धर्मों की सत्ता है, क्योंकि-वस्तु में अनन्तधर्म स्वीकार किये बिना वस्तु की सिद्धि सम्भव नहीं है। अतः आपके प्रामाणिक वाक्य कुवादियों रूपी हिरणों को डराने के लिए सिंहगर्जना के समान हैं।
9 भावार्थ-तस्य भावः तत्त्वमिति । 'तत्' शब्द बुद्धिस्थ पदार्थ का परामर्शक होता है। और वह वक्ता (कर्ता) के अधीन होता है। तत् शब्द के माध्यम से जितने विषय को ग्रहण करना चाहता है, उतने का ही ग्रहण होता है। यहाँ तत्त्व शब्द का प्रयोग पदार्थ के लिए किया गया है। महाभाष्यकार पतञ्जलि ने भी प्रस्तुत प्रसंग से मेल खाती बात कही है कि पदार्थ सार्थ में अनन्त धर्म नित्य, अनित्यादि एककालावच्छेद (एक ही समय में) उपस्थित रहते हैं । वस्तु या पदार्थ की व्युत्पत्ति भी तभी संगत होती है कि-'एककालावच्छेदेन वसन्ति