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स्याद्वादबोधिनी-१२८ है कि यदि मादक शक्ति की तरह चैतन्य को पांच भूत का विकार स्वीकार किया जाये तो जैसे-मादक शक्ति, प्रत्येक मादक पदार्थ (महा) आदि में पाई जाती है, वैसे ही. चैतन्यशक्ति को भी प्रत्येक वस्तु में सत्तात्मक रूप से स्वीकार करना पड़ेगा। साथ ही यदि पृथिवी प्रादि चैतन्य की उत्पत्ति है तो मुर्दे (शव) में चेतना का प्रभाव क्यों स्वीकार किया जाए ? उसमें पंचमहाभूतों की उपस्थिति में चैतन्य संवलित मानना चाहिए, किन्तु ऐसा व्यवहार कदापि नहीं होता। हमारे मत में तो पृथ्वी प्रादि से चैतन्य विजातीय है। अतः चेतना (मात्मा) को भौतिक विकार कथमपि स्वीकार नहीं किया जा सकता ॥ २० ।।
[ २१ ] श्रीजिनेश्वरोक्तां उत्पादादि त्रिपदीमवलम्ब्येमां कारिकामवतारयन् प्राचार्यः प्रत्यक्षोपलक्ष्यमाणमप्यनेकान्तवादं येऽवमन्यन्ते तेषामुन्मत्ततां प्रकटयन्नाह5 मूलश्लोकःप्रतिक्षणोत्पाव-विनाशयोगि
स्थिरैक-मध्यक्षमपीक्षमाणः । जिन ! त्वदाज्ञामवमन्यते यः,
स वातकी नाथ पिशाचकी वा ॥ २१ ॥