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स्याद्वादबोधिनी-१२५
- भाषानुवाद - क्रियावादियों के सिद्धान्तों का खण्डन करके, प्रक्रियावादी (अनात्मवादी) लोकायत मत (चार्वाक) का खण्डन करते हुए कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वर जी महाराज अनुमान आदि प्रमाणों के बिना प्रत्यक्ष प्रमाण की प्रसिद्धता बताकर चार्वाकों की बुद्धि की मन्दता प्रकट करते हैं
* श्लोकार्थ-अनुमान के बिना लोकायत (चार्वाक) दूसरे के अभिप्राय को समझ भी नहीं सकते। इसलिए चार्वाकों को बोलने का उपक्रम भी नहीं करना चाहिए । क्योंकि चेष्टा और प्रत्यक्ष दोनों में बहुत भिन्नता है। सर्वज्ञविभो हे जिनेश्वरदेव ! यह उनकी बुद्धि का कितना प्रमाद है।
9 भावार्थ-'विनानुमानेनेति' । चार्वाक मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को स्वीकार करते हैं। ऐसी स्थिति में इन्द्रियों के विषय के अतिरिक्त अन्य कोई पदार्थ ही नहीं है । अनु शब्द को शाब्दिक व्युत्पत्ति है-अनु= पश्चात्, मीयते =परिच्छते इति अनुमानम् ।
__ श्रीजैनदर्शनानुसार भी यह अनुमान दो प्रकार का होता है-स्वार्थानुमान और परार्थानुमान । जैसा कि