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स्याद्वादबोधिनी-११६
स्याद्वाद सिद्धान्त का आश्रय लेना श्रेयस्कर है। बौद्धों ने स्मृति को निज पक्षानुसार तर्कसंगत प्रतिपादित करने के लिए वासना एवं संतानक्षण की कल्पना की है, किन्तु कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजश्री ने युक्तिपूर्वक सहजरीति से उनका खण्डन मौलिक श्लोक के माध्यम से कर दिया है।
बौद्धों का कथन है कि वस्त्र के किसी एक भाग में कस्तूरी का प्रक्षेप करने पर धारण किये गये समस्त वस्त्र सुरभित-सुगन्धित हो जाते हैं या प्रतीत होते हैं। ठीक इसी प्रकार वह वासना भी सभी क्षणिक पदार्थों को वासित कर देती है। अतः स्मृति के सन्दर्भ में अनुपपत्ति की स्थिति नहीं है। सन्तान-परम्परा क्षणिक होते हुए भी दीपशिखा की भाँति अन्य सन्तानक्षण को उत्पादित करके ही क्षीण होती है। इस प्रकार वासना एवं सन्तान में बौद्धों ने भेद भी प्रदर्शित किया है; किन्तु परिपक्व बुद्धि से विमर्श करने पर दोनों की स्थिति एक रूप में हो उजागर होती है ।
___ बौद्धमत में सभी पदार्थ क्षणिक हैं तो वह वासना तथा दीपकात्मिका के माध्यम से प्रतिपादित सन्तानपरम्परा भी क्षणिक ही है। अक्षणिक होने पर तो