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स्याद्वादबोधिनी-११८ स्मृतिसमर्थनाय यावत्यः कल्पनाः बौद्धमतावलम्बिभिः कृताः सर्वा अपि कलिकालसर्वज्ञ-श्री हेमचन्द्राचार्य: निराकृताः ।
तत्रैव हेतुः केऽपि पदार्थास्तन्मते (बौद्ध मते) भिन्नकालस्थायिनो न सन्ति । अनुभूतिः पूर्वकालावच्छिन्ना, तज्जन्यसंस्कारः चिरस्थायी परमतेन स च केनापि कारणविशेषेणोदबुध्य चिरकालेन भाविनीमपि स्मृति जनयति । आत्मनो नित्यत्वात्, तनिष्ठसंस्कारोऽपि भूयो भूयो स्मृतिजनकत्वेन तत्र दाढयं जातम् । बौद्धमते वासनादि न चिरस्थायिनी क्षणिकत्वात् । दीपशिखया संतानपरम्परापि क्षणिकैव, प्रक्षणिकत्वे प्रतिज्ञाहानिः । अतः युक्त्या प्रमाणेन क्षणिकवादनिरसनमाचार्यस्य समुचितमेवेति ।।
- भाषानुवाद - * श्लोकार्थ-वासना और क्षणसन्तति परस्पर भिन्न, अभिन्न और अनुभय-तीनों प्रकार से सिद्ध नहीं होती है । इसलिए जिस प्रकार समुद्र में जहाज से उड़ा पक्षी समुद्र के किनारे को न देखकर (समुद्र का किनारा नहीं दिखाई देने के कारण) वापस जहाज पर ही लौटकर पाश्रय लेता है । "जैसे उड़ि जहाज को पंछी पुनि जहाज पर प्रावै" उसी प्रकार अन्य उपाय के न होने के कारण सर्वज्ञ विभु हे जिनेश्वरदेव ! बौद्धलोगों को भी आपके अनेकान्तवाद