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स्थाद्वादबोधिनी-१२० क्षणिकवाद की प्रतिज्ञा का ही उच्छेद हो जायेगा। वस्तुतः नाम भेद से भी कोई भिन्नता नहीं होती है। घट, कलश, कुम्भ पर्यायवाची शब्द मात्र होते हैं, . भिन्न नहीं। ____ अतः बौद्धों को क्षणिकवाद का प्राग्रह छोड़कर पूर्वोक्त दोषों के परिहार के लिए श्रीजैनमतानुसार प्रर्हद् भाषित सार्वभौम स्याद्वाद सिद्धान्त को ही अंगीकार-स्वीकार कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त उनके लिए अन्य कोई माश्रय नहीं मिलता है। युक्तिपूर्वक क्षणिकवाद का खण्डन समुचित ही है।
श्रीजैनदर्शन-जैनमत का बौद्धों से संक्षेपतः प्रश्न यह है कि-वासना और क्षण सन्तति परस्पर अभिन्न हैं, भिन्न हैं या अनुभय हैं ? यदि वासना और क्षण-सन्तति को भिन्न मानें तो दोनों में कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता। यदि भिन्न और अभिन्न दोनों विकल्प न मानकर भिन्नअभिन्न मानते हो तो अनेकान्त (स्याद्वाद) को छोड़कर अन्यवादियों के मत में भेद और अभेद के अतिरिक्त श्रेयस्कर कोई अन्य तृतीय पक्ष नहीं हो सकता है ॥ १६ ॥