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स्याद्वादबोधिनी-११५
क्षण से मोक्ष का क्षण अन्य है, अतएव बद्ध पुरुष को मोक्ष नहीं मिल सकता। अनात्मवादी बौद्धों के मत में स्मृतिज्ञान भी दूसरा क्षण है। अतः एक बुद्धि से अनुभव किये हुए पदार्थों का दूसरी बुद्धि से स्मरण नहीं हो सकता। स्मृति के स्थान पर संतान को एक अलग पदार्थ मानकर एक संतान दूसरी संतान के साथ कार्यकारण भाव स्वीकार करने पर भी संतान क्षणों की पारस्परिक भिन्नता तो तब भी उसी प्रकार उपस्थित रहेगी। क्योंकि बौद्ध मत में समस्त क्षणों की पारस्परिक भिन्नता है ।। १८ ॥
[ १६ ] अथ तथागताः क्षणक्षये सर्वव्यवहारानुपपत्ति परैरुद्भाषितमाकयेत्थं प्रतिपादयन्ति
यत् सर्वपदार्थानां क्षणिकत्वेऽपि वासनाबललब्धजन्मना ऐक्याध्यवसायेन ऐहिकामुष्मिक - व्यवहारप्रवृत्तेः कृतप्रणाशादिदोषा: निरवकाशा एवेति । तदाकूतं पारितु कामस्तत्कल्पित-वासनाया: क्षणपरम्परातो भेदाभेदानुभयलक्षणे पक्षत्रयेऽप्यघटमानत्वं प्रदर्शयन् स्वाभिमतभेदाभेदस्याद्वादमकामयमानानपि तान् अंगीकारयितुमाह