________________
स्याद्वादबोधिनी-११४ बौद्ध अपने मत-स्थापन के सन्दर्भ में 'सन्तान' नामक एक पृथक् पदार्थ की योजना करते हैं। तदनुसार सन्तान का एक क्षण अन्य क्षण से सम्बद्ध होता है। मरण के समय होने वाला ज्ञान क्षण भी दूसरे विचार से सम्बद्ध होता है। अतः संसार की परम्परा सिद्ध होती है ।
किन्तु यह स्थापना ठीक नहीं है, क्योंकि संतानक्षणों का पारस्परिक सम्बन्ध करवाने वाला कोई पदार्थ नहीं है जिससे दोनों क्षणों का पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित हो सके।
दूसरी बात यह है कि बौद्ध द्वारा आत्मा के स्वीकार करने पर मोक्ष सिद्ध नहीं होता, क्योंकि संसारी आत्मा के प्रभाव में मोक्षप्राप्ति किसे होगी ?
बौद्ध सम्पूर्ण वासना के नष्ट हो जाने पर भावना चतुष्टय से होने वाले विशुद्ध ज्ञान को मोक्ष कहते हैं ।
किन्तु उनके क्षणिकवाद के कारण इस संदर्भ में भी कार्य-कारण भाव नहीं सिद्ध होता तथा प्रशुद्ध ज्ञान से अशुद्ध ज्ञान ही उत्पन्न होता है, विशुद्ध ज्ञान नहीं। जिस पुरुष (जीव) का बन्ध हो मोक्ष भी उसी को नियमानुसार प्राप्त होना चाहिए, किन्तु क्षणिकवादियों के मत में बन्ध