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स्याद्वादबोधिनी-११३
गिरिराज को जिसके पास 'शत्रुञ्जया' नाम की पावन नदी बहती है। पूर्व जन्म के वृत्तान्त भो इस स्मृति के कारण ज्ञात होते हैं।
क्षणिकवादी सुगतमत में प्रात्मा भी क्षणविनाशी है । क्योंकि वे शरीर से पृथक किसी प्रात्मा को स्वीकार नहीं करते । जिस शरीर ने अनुभव किया उसके विनष्ट हो जाने पर अन्य शरीर अवाप्ति पर भी स्मृति सम्भव नहीं है ।
प्रात्मा का शरीर से अलग नित्यत्व स्वीकारने पर तो द्रष्टा, अनुभवकर्ता, स्मर्ता, एक ही प्रात्मा में संघटित हो जाते हैं, क्योंकि जिसने अनुभव किया उसी ने ही कालान्तर में स्मरण भी किया है अतः वहां एकाधिकरणवृत्तिता घटित होती है ।
उक्त श्लोक के माध्यम से सारांशतः कहना यह है कि प्रत्येक वस्तु क्षणिक मानने पर बौद्ध मत में प्रात्मा पृथक् से पदार्थ नहीं रह पाता, तथा प्रात्मा के न रहने से संसार की स्थिति (व्यवस्था) भी समीचीन नहीं बन पाती; क्योंकि क्षणिकवादियों के मत में पूर्व और अपर क्षणों में कोई सम्बन्ध न होने से पूर्वजन्म के कर्मों का जन्मान्तर में फलभोग सम्भव नहीं।