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________________ स्याद्वादबोधिनी - १०५ शून्यवादी प्रमाता आदि को प्रमाण अथवा अप्रमाण से कदापि सिद्ध नहीं कर सकते । अप्रमाण कुछ कर नहीं सकता, अतः अप्रमाण से प्रमाता आदि सिद्ध नहीं हो सकते । शून्यवादियों के मत में प्रमाण के अवस्तु होने के कारण प्रमारण से भी प्रमाता आदि की सिद्धि होना सम्भव नहीं है । जिस प्रमाण से शून्यवादी अपने पक्ष की सिद्धि करना चाहते हैं वह भी बिना प्रमेय के नहीं बन सकता, क्योंकि प्रमाण कदापि निर्विषयक नहीं होता । नतः शून्यवादियों का सिद्धान्त उपहास करने योग्य है ।। १७ ।। [ १ ] इदानीं क्षणिकवादिन ऐहिकामुष्मिक व्यवहारानुपपन्नार्थ समर्थनमविमृश्यकारितं दर्शयन्नाह - 5 मूलश्लोक: कृतप्रणाशा कृत-कर्मभोग भवप्रमोक्षस्मृतिभङ्गदोषान् । उपेक्ष्य साक्षात् क्षणभङ्गमिच्छन्, अहो ! महासाहसिकः परस्ते ।। १८ ।। अन्वयः - कृतप्ररणाशदोषम्, प्रकृतकर्मदोषम्, भवभङ्गदोषम्, प्रमोक्षभंगदोषम्, ( इत्येतान् दोषान् द्वन्द्वान्ते श्रूय
SR No.002335
Book TitleSyadwad Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamvijay Gani
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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