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स्यादवादबोधिनी - १०३
( शास्त्र - प्रमाण )
किन्तु बौद्ध तो आगम प्रमाण को स्वीकार हो नहीं करता । सिद्धान्त को समर्थित भी नहीं कर सकता । फिर भी उसने अपने मत में कुछ इस प्रकार दलीलें दी हैं
अतः वह अपने
समस्त पदार्थ शून्य हैं, क्योंकि प्रमाता, प्रमेय श्रौर प्रमिति वस्तु हैं ।
[१] प्रमाता ( श्रात्मा ) इन्द्रियों का विषय नहीं हो सकता, अतः प्रत्यक्ष से आत्मा की सिद्धि सम्भव नहीं है । अनुमान से भी आत्मा की सिद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि प्रत्यक्ष के बिना अनुमान नहीं हो सकता । साथ ही किसी भी हेतु से श्रात्मा की सिद्धि नहीं हो सकती । आगम ( शास्त्र ) परस्पर विरोधी हैं । अतः आगम प्रमारण भी श्रात्मा को सिद्ध नहीं कर सकता ।
की सिद्धि नहीं हो सकती है । बाह्य पदार्थों के अभाव में घट, अवगति होती है । अतः प्रमेय भी कोई पदार्थ नहीं है ।
[२] प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण से बाह्य पदार्थों अविद्या की वासना से ही पट इत्यादि पदार्थों की
[३] प्रमेय के प्रभाव में प्रमाण की सम्भावना ही
नहीं है ।