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व्याख्यान-पूजा-प्रभावना तथा रात को भावना का कार्यक्रम चालू रहा ।
चैत्र ( फागण ) वद ४ गुरुवार दिनांक १६-३-८७ के दिन इन्द्रध्वज-रथ- हाथी-घोड़े तथा बेन्ड युक्त जुलूसवरघोड़ा निकला । उसी दिन पूज्यपाद आचार्य म. सा. चतुर्विध संघ तथा बेन्ड सहित श्रीमान् सांकलचन्दजी के घर पर पधारे । वहाँ पर ज्ञानपूजन और मंगल प्रवचन शा. सांकलचन्दजी ने पैदल संघ निकालने की प्रतिज्ञा ली । बाद में प्रभावना हुई ।
हुआ ।
चैत्र ( फागण ) वद ५ शुक्रवार दिनांक २०-३-८७ के दिन 'श्रीसिद्धचक्र महापूजन' विधिपूर्वक पढ़ाया गया । रानी स्टेशन से विहार द्वारा पूज्यपाद आचार्य म. श्री खीमेल, फालना - अम्बाजीनगर, सांडेराव, ढोला होकर किरवा पधारे ।
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गुड़ाएन्दला में नवाहिनका महोत्सव
चैत्र सुद८ सोमवार दिनांक ६-४-८७ के दिन किरवा से विहार कर राजस्थानदीपक परमपूज्य प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. आदि गुड़ा( १७३ )