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शासन में पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामी की पट्ट परम्परा चल रही है और भविष्य में भी चलेगी)।
इस प्रकार श्रीइन्द्रभूति आदि ग्यारहों ही गणधर सर्वज्ञ विभु श्री महावीरस्वामी भगवन्त के शिष्यरत्न बने और विश्व में महान् महर्षि हुए। उनमें श्रीअग्निभूति आदि नौ गणधरों ने तो भगवान की विद्यमानता में ही केवलज्ञान प्राप्त किया और अन्त में सकल कर्म का क्षय करके वे मोक्ष में पधारे और वहाँ शाश्वत सुख के भागी बने । श्रोइन्द्रभूति और श्री सुधर्मास्वामी दोनों गणधर भगवन्त प्रभु के निर्वाण बाद मोक्ष में पधारे और शाश्वत सुख के अधीश्वर बने।
॥ इति श्री गणधरवाद ॥.
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