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उपसंहार इस प्रकार आलेखन किये हुए इस पवित्र 'गणधरवाद' ग्रन्थ का श्रवण, चिन्तन और मनन कर सभी धर्मी जीव धर्मात्मा, सवज्ञ विभु भाषित श्री जैनधर्म के, जैनदर्शन के, जैनसिद्धान्त-शास्त्र के अद्वितीय-अलौकिक-अनुपम तत्त्वज्ञान को प्राप्त कर प्रात्मा का कल्याण करने वाले हों। इसी हार्दिक शुभेच्छा के साथ, इस अालेखित लेख में मेरे मतिमन्दतादिक कारणों से श्री जिनाज्ञा के विरुद्ध जानते या अजानते कुछ भो मेरे द्वारा लिखा गया हो तो उसके लिए मन-वचन-काया से मैं 'मिच्छामि दुक्कडं' देता हुआ विराम पाता हूँ।
'जैनं जयति शासनम् ।
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