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________________ भवितव्यता रूप पाँच हेतुत्रों का परिपाक होते ही अटक जाता है। पूर्व में अनन्त भव्य मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं तथा भविष्य में भी अनन्त भव्य मोक्ष प्राप्त करेंगे।" ___ पुनः प्रभास पण्डित अपने सन्देह-संशय को व्यक्त करते हुए प्रश्न करते हैं-"मुक्त आत्माओं को परमज्ञान और उनमें सर्व दुःखों का प्रभाव क्यों होता है ?" प्रभु ने कहा-"ज्ञान का सम्बन्ध आत्मा के साथ है। इन्द्रियों का सम्बन्ध आत्मा के साथ नहीं है। कारण यह है कि ज्ञान प्रात्मा का गुण है। जिस प्रकार परमारण रूपादि रहित नहीं होते, उसी प्रकार प्रात्मा ज्ञान रहित नहीं होती । आत्मा चैतन्यवान ज्ञानवान है। संसारी आत्माओं के समस्त कर्मों के प्रावरण नष्ट होने से मुक्त आत्मा परमज्ञान वाले होते हैं तथा बाधा एवं पीड़ा का कहीं नाम निशान नहीं होने से सर्वदा वे अव्याबाध हैं।" पुनः प्रभास पण्डित अपने सन्देह-संशय को व्यक्त करते हुए बोले-“हे भगवन्त ! सारे कर्मों का विनाश होने पर पुण्य-पाप का भी विनाश होगा, फिर सुख कहाँ से ? फिर सुख-दुःख का आधार तो देह है और मुक्त सुख और दुःख कुछ भी नहीं है तो फिर इन्द्रिय के अभाव में सुख और दुःख कैसा ?" पुनः प्रभु ने कहा कि- "हे प्रभास ! ( १३८ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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