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होता है । फिर पूर्व भव की सत्ता न हो तो जीवों का जो वैचित्र्य है वह घटित नहीं हो सकता । क्योंकि बिना हेतु के कार्य को उत्पत्ति नहीं होती । संसार में वैचित्र्य एक ही माता की कुक्षि- उदर से जन्म पाने वाली सन्तानों में भी दिखाई देता है । इसका कारण भी पूर्व जन्म का अनुबन्धन है तथा जहाँ अनुबन्धन है तो पूर्वभव - परलोक भी है और इसी प्रकार पूर्वभव परलोक का भी पूर्वभव, उसका भी पूर्वभव इस प्रकार भवभवान्तर अनन्त भव हैं ।
मतिज्ञान के भेदों के अन्तर्गत प्राया हुआ जातिस्मरण ज्ञान भी पूर्व भव को सिद्ध करता है । इस तरह सर्वज्ञ विभु श्रीमहावीर भगवान के मुँह से “विज्ञान घन एव० " इन वेदपदों का सच्चा अर्थ पाकर तथा " परभव - परलोक है" ऐसे प्रभु के युक्तिसंगत सुवचन सुनकर दसवें श्रीमतार्य विप्र-पण्डित का " परभव- परलोक है कि नहीं ? " इस विषय का सन्देह - संशय नष्ट हुआ । " परभव- परलोक है" इस सत्य कथन का निश्चय अपने अन्त:करण में निश्चित हुआ ।
तत्काल श्रीमेतार्यं विप्र ने अपने सर्वज्ञपने के अभिमान को तिलांजलि दे दी और सच्चे सर्वज्ञ विभु श्रीमहावीर परमात्मा का शिष्य बनने का निर्णय किया । उनके
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