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* दसवें गणधर श्रीमेतार्य 'परभव- परलोक का सन्देह - संशय '
पूर्वोक्त श्रीइन्द्रभूति आदि नौ विप्र-पण्डितों को प्रव्रजित - दीक्षित हुए सुनकर दसवें श्रीमेतार्य नामक विप्रपण्डित ने भी विचार किया कि जिनके श्रीइन्द्रभूति आदि नौ अग्रज द्विज पण्डित अपने शिष्य परिवार सहित शिष्य बन चुके, वे मेरे भी पूज्य ही हैं। मैं भी अपने विद्याथियों सहित वहाँ शीघ्र जाऊँ और अपने हृदय में रहे हुए सन्देह-संशय को दूर करू ं ।
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इस तरह विचार करके श्रीमेतार्य विप्र-पण्डित भी अपने तीन सौ छात्रों के परिवार सहित सर्वज्ञ विभु श्रीमहावीर परमात्मा के पास आये । उसी समय प्रभु ने भी मधुरवाणी में उसके नाम और गोत्र का उच्चारण करते हुए कहा-
"थ परभवसन्दिग्धं, मेतायं नाम पण्डितप्रवरम् । ऊचे विभुर्यथास्थं, वेदार्थं किं न भावयसि ? 11
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