________________
* नौवें गणधर श्रीअचलभ्राता है
'पुण्य-पाप के विषय में संशय' पूर्वोक्त श्रीइन्द्रभूति आदि अाठ अग्रजों को प्रजितदीक्षित हुए सुनकर नवमे श्रीअचलभ्राता नामक विप्रपण्डित ने भी विचार किया कि जिनके श्रीइन्द्रभूति आदि आठ अग्रज विप्र-पण्डित अपने शिष्य-परिवार सहित वहाँ जाकर शिष्य बने, वे मेरे भी पूज्य ही हैं। मैं भी अपने छात्रों के साथ वहाँ शीव्र जाऊँ और अपने अन्तःकरण में विद्यमान सन्देह-संशय को दूर करू।
इस तरह विचार करके श्रीअचलभ्राता विप्र-पण्डित भी अपने तीन सौ शिष्यों के साथ सर्वज्ञ प्रभु श्रीमहावीर परमात्मा के पास आये। उसी समय प्रभु ने भी मधुरवाणी में उसके नाम और गोत्र का उच्चारण करते हुए कहा
"अथ पुण्ये संदिग्धं, द्विजमचलभ्रातरं विबुधमुख्यम् । ऊचे विभुर्यथास्थं, वेदार्थ किं न भावयसि ? ॥
( १२१ )