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________________ _* आठवें गणधर श्रीअकम्पित ॐ - 'नारक का संदेह-संशय' पूर्वोक्त श्रीइन्द्रभूति आदि सात अग्रजों को प्रवजितदीक्षित हुए सुनकर आठवें श्रीप्रकम्पित नामक विप्र पण्डित ने भी विचार किया कि जिनके श्रीइन्द्रभूति आदि सातों अग्रज विप्र पण्डित अपने शिष्य-परिवार के साथ शिष्य बने, वे मेरे भी पूज्य ही हैं। मैं भी अपने शिष्य-परिवार सहित वहाँ शीघ्र जाऊँ और अपने अन्तःकरण में विद्यमान सन्देह-संशय को दूर करूं । ___ इस तरह विचार करके श्रीप्रकम्पित विप्र पण्डित भी अपने तीन सौ छात्रों के साथ सर्वज्ञ विभु श्रीमहावीर भगवान के पास आये। उसी समय प्रभु ने भी मधुरवाणी में उसके नाम-गोत्र का उच्चारण करते हुए उसको कहा"अथ नारकसन्देहात्, सन्दिग्धमकम्पितं विबुधमुख्यम् । ऊचे विभुर्यथास्थं, वेदार्थं कि न भावयसि ? ॥" ( ११४ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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