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आसक्त होने से बिना कार्य जैसे आज आये हुए दिखते हैं वैसे बार-बार नहीं आते हैं। उसके भी अनेक कारण हैं--
(१) देवों को बार-बार यहाँ पाने का विशेष कोई कारण नहीं है।
(२) स्वर्ग के सुख की तुलना में यह मनुष्य लोक दुःखपूर्ण एवं दुर्गन्धमय है। वे स्वयं स्वाधीन एवं सशक्त हैं, अतः मनुष्यों से उनका कोई स्वार्थ नहीं है। श्रीतीर्थंकरभगवन्तों के कल्याणक महोत्सवों में, भक्ति से, केवलज्ञानियों से अपना सन्देह निवारण करने हेतु, या पूर्व भव के ममत्व के कारण, या वचनबद्ध होने पर, या विशिष्ट प्रकार की तपानुष्ठान क्रिया होने पर, उपासना मन्त्रादि के आधीन होने पर, या स्वयं की इच्छा से क्रीड़ा कौतुकार्थ या साधुजनों के परीक्षार्थ देवगण मनुष्यलोक में आते हैं।
इस तरह सर्वज्ञ विभु श्रीमहावीरस्वामी भगवान के मुंह से “को जानाति ? मायोपमान् गीर्वाणान् इन्द्र-यमवरुण-कुबेरादीन्” वेदपदों का सही अर्थ जानकर आज तक मैंने जो अर्थ किया वह असत्य-अयुक्त था ऐसा मान कर, तथा 'देव हैं' प्रभु के ऐसे युक्तिसंगत सुवचन सुनकर
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