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पाने के साथ ही भगवान को तीन प्रदक्षिणापूर्वक 'भगवन् ! किं तत्त्वं ?' इस प्रकार तोन बार पूछा । भगवन्त ने फरमाया-'" उपन्न इ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा " अर्थात्'सर्व पदार्थ वर्त्तमान पर्याय रूप में उत्पन्न होते हैं, पूर्व के पर्याय रूप में नष्ट होते हैं तथा मूल द्रव्य रूप में ध्र ुवनित्य रहते हैं ।' इस तरह सर्वज्ञ प्रभु के मुँह से 'त्रिपदी' सुनकर छठे गणधर श्रीमण्डित ने एक ही अन्तर्मुहूर्त में सम्पूर्णपने श्रीद्वादशाङ्गी की सुन्दर रचना की ।
॥ इति श्रीगरणधरवादे छठे गणधर श्रीमण्डित का संक्षिप्त वर्णन |
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