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करने से कर्म का भी कर्त्ता है । जिस प्रकार घट का उत्पादक कुम्भकार यह घट का कर्त्ता है, उसी प्रकार जीव तथा कर्म का सम्बन्ध अनादिकाल का है तथा कर्मों का बन्ध भी अनादिकाल का है ।
प्रश्न - पुनः श्रीमण्डित ने पूछा, 'हे प्रभो ! कर्म तथा बन्ध का सम्बन्ध यदि अनादिकाल से शाश्वत है तो फिर मोक्ष को कहाँ अवकाश मिलेगा ? ' प्रत्युत्तर में प्रभु ने कहा कि - ' तथा न बध्यते मिथ्या" यदि बीज तथा अंकुर जो दोनों कार्य-कारण भाव से शाश्वत हैं, उनमें से किसी भी एक का अपने कार्य में शैथिल्य या विनाश होगा तो एक की परम्परा के विनष्ट होते ही दूसरी परम्परा भी नष्ट हो जाती है ।
अर्थात् कारण के नष्ट होते ही कार्य भी नष्ट हो जाता है । कार्य के नष्ट होने पर नवीन कारणों की सृष्टि नष्ट हो जाती है । यथा - सुवर्ण तथा मिट्टी का संयोग खान में परम्परागत कार्य-कारण मान से होने पर भी अग्नि के संयोग से एक का नष्ट होना, वह दोनों की समवायावस्था को नष्ट कर देता है । उसी प्रकार बन्ध में सड़ने से पूर्व ही जीव मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । जहाँ जन्म, जरा, मरण, सुख-दुःख, संताप, रोग, शोक,
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