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* छठे गणधर श्रीमण्डितजी * 'बन्ध - मोक्ष का सन्देह'
प्रथम श्रीइन्द्रभूति से पंचम श्रीसुधर्मास्वामी पर्यन्त विप्रपण्डितों की प्रव्रज्या दीक्षा सुनकर छठे श्रीमण्डित नाम के विप्रपण्डित ने भी विचार किया कि जिनके पास श्रीइन्द्रभूति प्रादि पाँचों जन अपने-अपने शिष्य परिवार सहित दीक्षित हुए और पाँचों मुख्य उन्हीं के ही शिष्य बने, वे मेरे भी पूज्य हैं । अब मैं भी शीघ्र उनके पास जाऊँ और अपने मन का सन्देह - संशय दूर करूँ । इस तरह निर्णय करके छठे श्रीमण्डित नाम के विप्र पण्डित अपने साढ़े तीन सौ शिष्यों को साथ लेकर सर्वज्ञ विभु श्रीमहावीर स्वामी भगवान के पास आये ।
उसी समय भगवान ने भी मधुरवाणी में उसके नाम और गोत्र का उच्चारण करते हुए उसे कहा कि
अथ बन्ध-मोक्षविषये, सन्दिग्धं मण्डिताभिधं विबुधम् । ऊचे विभुर्यथास्थं वेदार्थं किं न भावयसि ? ॥ ( ९९ )