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अन्य पदार्थ में मन चला जाय; से आत्मा का उपयोग अन्य पूर्व में घटपटादि पदार्थ जो
इत्यादि किसी भी कारण पदार्थ में प्रवर्तता हो तब, ज्ञेयपने थे, वे पदार्थ ज्ञेयपने नहीं रहते । किन्तु अन्य पदार्थों में जो उपयोग प्रवर्ता
हुआ हो वे पदार्थ ज्ञेयपने प्राप्त होते हैं । वे घट-पट इत्यादि ज्ञेयपने नहीं रहते हैं, 'यह घट है, यह पट है' इत्यादि प्रकार के उपयोग रूप में रहता नहीं हैं । इसलिये ही इस वेदवाक्य में कहा है कि- 'न प्रेत्यसंज्ञाऽस्ति' अर्थात् अन्य पदार्थ के उपयोग समये पूर्व के उपयोगरूप संज्ञा रहती नहीं है । ऐसा सत्यार्थ होने से स्पष्ट समझा जाता है कि शरीर से आत्मा पृथग्
भिन्न है ।
इस तरह जब तब आत्मा भी
'विज्ञानघन ० ' इत्यादि पदों का गूढ़ार्थ समझाते हुए कहा - यदि शरीर तथा आत्मा भिन्न नहीं होते तो जीवन और मरण का भेद होता ही नहीं । परस्पर विरुद्धता की तुम्हें प्रतीति भ्रान्ति से ही होती है । वेदवाक्य आत्मा की सत्ता को प्रतिपादित करता है । आज भी किसी-किसी को जातिस्मरण ज्ञान द्वारा पूर्व-जन्म का ज्ञान दृष्टिगत होता है । अतः प्रत्येक भव में सुख-दुःख सहन करने वाला शरीर पृथक-पृथक है । पुनः दूर होने
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