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भाव्यम्"। इस वेदपद का जो अर्थ तुमने किया है वह बराबर नहीं और उसकी पुष्टि में युक्ति भी बराबर नहीं है। इसका समीचीन अर्थ इस प्रकार है-चेतन-अचेतन स्वरूप 'जो कोई भूतकाल में हुआ है और जो भविष्यकाल में होने वाला है वह सब प्रात्मा ही है।' इस तरह कहने वाले ने वेदपदों में आत्मा की स्तुति की है, किन्तु आत्मा की स्तुति करने से 'कर्म नहीं है' ऐसा समझने का नहीं । शास्त्रों में आए हुए पद तीन प्रकार के होते हैं-(१) कितनेक पद विधिदर्शक, (२) कितनेक पद अनुवाददर्शक और (३) कितनेक पद स्तुति रूप होते हैं।
इन तीन प्रकार के पदों में कितनेक विधिदर्शक अर्थात् कितनेक विधि को प्रतिपादन करने वाले होते हैं। जैसे "स्वर्गकामोऽग्निहोत्रं जुहुयाद" 'स्वर्ग की कामना वाले को अग्निहोत्र (यज्ञ-होम) करना चाहिये' इत्यादि। ऐसे विधि बताने वाले वेदवाक्य विधि के प्रतिपादक कहे जाते हैं। "द्वादशमासाः संवत्सरः"। 'बारह मास का एक संवत्सर अर्थात् वर्ष कहा जाता है' इत्यादि तथा "अग्निरुष्णः"। 'अग्नि उष्ण अर्थात् गरम होती है' इत्यादि । इस तरह कहने वाले वाक्य विश्व में प्रसिद्ध बात का मात्र अनुवाद करने वाले कहे जाते हैं। "इदं
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