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________________ इत्यादि कुछ भी नहीं हैं। विश्व में देव, मनुष्य, तिथंच, पर्वत तथा पृथ्वी इत्यादि जो-जो वस्तुएँ दिखाई दे रही हैं वे सर्व आत्मा ही हैं। प्रात्मा बिना की एक भी वस्तु नहीं है। इस वचन से 'सर्व वस्तुएँ प्रात्मा की हैं' कर्म की नहीं। इसलिये 'कर्म नहीं है' ऐसा तुमको स्पष्टपने लगता है। फिर तुम मानते हो कि उक्त वेदपद का अर्थ युक्ति से भी युक्त लगता है। कारण कि 'प्रात्मा अमूर्त हैं' उसको मूर्त ऐसे कर्म द्वारा अनुग्रह और उपघात किस तरह सम्भव सकता है ? जैसे अमूर्त आकाश का मूर्त चन्दन आदि द्वारा मण्डन-विलेपन और तलवार आदि शस्त्र द्वारा खण्डन नहीं हो सकता है, वैसे अमूर्त आत्मा को भी मूर्त ऐसे कर्म से अनुग्रह और उपघात नहीं हो सकता। इसलिये कर्म नाम का पदार्थ नहीं है। ऐसा निश्चयात्मक निर्णय नहीं किया। कारण कि कर्म की सत्ता प्रतिपादन करने वाले अन्य वेदपदों को तथा लोक में भी कर्म की प्रसिद्धि देखकर तुम सन्देह-संशय में पड़े हो कि 'कर्म है कि नहीं ?' ... परन्तु हे अग्निभूति ! यह तेरा सन्देह-संशय अयुक्त है। कारण कि "पुरुष एवेदं ग्निं सर्वं यद् भूतं यच्च ( ७४ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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