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में परिभ्रमण करने वाला है और दया, इन्द्रिय-दमनादि उपायों द्वारा कर्मरहित होकर मोक्ष में भी जाने वाला है । इस तरह ज्ञानादि स्वरूप वाला आत्मा सिद्ध ही है । आत्मा का यही लक्षण है, दूसरा लक्षण नहीं है इस तरह आस्तिक दर्शनों के मत से भी आत्मा की अस्तिता सिद्ध होती है ।
आगम - शास्त्रप्रमाण से आत्मा की सिद्धि
जैनदर्शन अनेकान्त दृष्टि से आत्मा के सम्बन्ध में उक्त ये सभी स्वरूप मानता है । इसलिये इसमें उस आत्मा के. सम्बन्ध में प्रागमप्रमाण मिलते हैं ।
दया- दान- दमन से भी आत्मा की सिद्धि आत्मा नहीं मानने वाले ऐसे नास्तिकवाद का खण्डन करके प्रत्यक्षादि प्रमाणों से आत्मा की सिद्धि की गई है । अब हे गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति ! विश्व में आत्मद्रव्य विद्यमान है इतना ही नहीं, किन्तु आत्मा ही एक स्वतन्त्र तत्त्व भी है । इसलिये तो तेरे ही वेदशास्त्र में कहे हुए अग्निहोत्रादि यज्ञ के स्वर्गफलादि घट सकते हैं । पुनः वेद में ही कहा है कि - "स वै प्रयमात्मा ज्ञानमयः " । वह आत्मा ज्ञानमय है । फिर " ददद-दमो दानं दया
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