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है। उसी समय पर उसी स्थान पर भोगी का होना आवश्यक नहीं है, अन्यत्र भी हो सकता है। जैसे वस्त्रादि अन्यत्रं हों तथा उसका पहनने वाला अन्यत्र हो।
(४) मनुष्य जैसे साहसी रूप साधन से काम लेता है उसी प्रकार इन्द्रियाँ भी साधन स्वरूपा हैं। आत्मारूपी स्वामी इन्द्रियों से काम लेता है। यथा चाकू से कलम घड़ी जाती है, दातृ से काटी जाती है तथा दीपक से दिखाई देती है। इसमें घड़ने वाला, काटने वाला तथा देखने वाला अलग-अलग है। उसी प्रकार इन्द्रियों को तथा विषयों को ग्रहण करने वाले अलग-अलग हैं। साधक को साधन की अपेक्षा है, परन्तु साधन और साधक दोनों ही एक हों, ऐसा सम्भव नहीं है।
. (५) तुरन्त जन्मे हुए बालक को स्तनपान करना किसने सिखाया ? तृप्त होते ही वह स्तन क्यों छोड़ देता है ? इन संस्कारों का अनुभव करने वाला कौन है ? तो कहना पड़ेगा कि-यह आत्मा ही है ।
(६) पुत्र में पिता से विपरीत गुणों या अवगुणों का उदय किस कारण होता है ? इसका कारण यह है कि आत्मा पृथक्-पृथक् संस्कारों को लेकर जन्मती है।
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