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इत्यादि गुण सर्व को स्वानुभव से प्रत्यक्ष सिद्ध हैं। . अत: उन गुणों के आधार, प्रात्मा रूपी गुणी को भी स्वप्रत्यक्ष सिद्ध मानना चाहिये।
___ स्मरण, इच्छा, संशय इत्यादि गुणों का आधार शरीर तो नहीं कहा जाता। कारण कि जैसा गुण हो वैसा ही गुणी होता है। वह अमूर्त और चैतन्य रूप है जबकि शरीर तो मूर्त तथा जड़ रूप है। इस तरह अमूर्त और चैतन्य रूप गुणों का आधार-मर्त और जड़ रूप शरीर कैसे हो सकता है ? इसलिये अमूर्त और चैतन्य रूप गणों का आधार गुणी, अमूर्त तथा चैतन्य रूप ऐसा आत्मा ही स्वीकारना चाहिये ।
इस तरह प्रात्मा आंशिक रूप से प्रत्यक्ष है। आत्मा का सर्वांगीण प्रत्यक्ष तो सिर्फ सर्वज्ञ ही कर सकते हैं। जैसे दूध में निहित घी भी दूध का दही, मक्खन, तापनादिक विधियाँ करने से ही प्रत्यक्ष होता है। वैसे ही इधर भी सर्वज्ञ बनने के लिये छद्मस्थ आत्मा को तपश्चर्यादि विधियों का आचरण करना होता है।
इस प्रकार सर्वज्ञ के केवलज्ञान प्रत्यक्ष से आत्मा प्रत्यक्ष सिद्ध होती है।
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