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________________ अग्नि है, पुष्प में सुगन्ध है तथा चन्द्रकान्तमणि में सुधा है, वैसे ही देह-शरीर में आत्मा है। वह शरीर से भिन्न है। (११) जैसे पवन-वायु से भरी हुई थैली को खाली करके तौल करने पर भी वजन नहीं घटता है, वैसे ही मृतक के वजन में भी फेरफार नहीं होता है। अर्थात् कमी नहीं होती है। कारण कि आत्मा अगुरुलघु गुण वाला है। (१२) शारीरिक अस्वस्थता में शरीर कृश होते हुए तथा कोई अकस्मात् में शरीर का रंग पलट जाने पर संदेह होता है कि 'क्या यह मेरा शरीर है ?' फिर कारणवशात् शरीर के अवयव कपाइ जाने पर उन अवयवों द्वारा किये हुए अनुभव को कौन याद रखता है ? तो कहना पड़ेगा कि अनुभव करने वाले अवयव का तो विनाश हो गया है ? यही कथन प्रात्मा की सिद्धि करता है। - (१३) जिसके गुण प्रत्यक्ष होते हैं वह गुणी भी प्रत्यक्ष ही माना जाता है। अर्थात् गुणों के प्रत्यक्ष से गुणी भी प्रत्यक्ष कहलाता है। स्मरण, इच्छा, संशय ( ५३ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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