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इस तरह किसी भी प्रकार से 'भूतों के समुदाय रूप शरीर में से ज्ञान उत्पन्न होता है' ऐसा सिद्ध कभी भी नहीं हो सकता । इसलिये अवश्य मानना चाहिये कि देह - शरीर से ज्ञान कभी भी उत्पन्न नहीं होता, किन्तु देह शरीर से भिन्न किसी पदार्थ से ज्ञान उत्पन्न होता है । वह पदार्थ है 'आत्मा' ।
( ६ ) इन्द्रिय द्वारा अनुभूत पदार्थ इन्द्रिय के और पदार्थ के अभाव में अन्धत्वादि प्रसंग पर भी स्मरण रहते हैं, वह भी आत्मा का अस्तित्व सिद्ध करता है ।
( ७ ) स्वप्न में अनुभव कौन करता है ? पड़ेगा कि - 'आत्मा ही' करता है ।
तो कहना
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( ८ ) जहाँ पर अपना देह शरीर भी दिखाई नहीं देता, ऐसे घनघोर अँधेरे में भी 'मैं हूँ' इस तरह प्रत्यक्ष अनुभव आत्मा का ही होता है; न कि शरीर का ।
( 8 ) "आत्मा नहीं है" यह वाक्य भी आत्मा की सिद्धि करता है । जैसे कोई कहे कि 'देवदत्त नहीं है' । इस वाक्य से देवदत्त की सत्ता स्वयं ही सिद्ध होती है ।
(१०) जैसे दूध में घी है, तिल में तेल है, काष्ठ में ( ५२ )