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है। इस तरह पर्याय स्वरूप में आत्मा उत्पत्ति और विनाश रूप है तथा द्रव्य रूप में नित्य है । ___ "न प्रेत्यसंज्ञाऽसि"-इसका अर्थ यह हुआ कि घट का विनाश होने के पश्चात् घड़े सम्बन्धी प्रात्मा का ज्ञान पर्याय नष्ट होता है, ज्ञान यह प्रात्मा का पर्याय है, किन्तु उससे यह समझना कि आत्मा नाम की कोई वस्तु है ही नहीं, जबकि "अग्निहोत्रं जुहूयात् स्वर्गकामः" इस वेदवाक्य में यह कहा गया है कि स्वर्ग की इच्छा करने वाले जीव को अग्निहोत्र करना चाहिये। इससे यह सिद्ध होता है कि यह प्रात्मा इस लोक को छोड़कर अर्थात् देह का त्याग कर परलोक गमन करती है।
अपरं च(१) “स वै अयं प्रात्मा ज्ञानमयः।"
(२) "सत्येन लभ्यस्तपसा ह्यष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुद्धोऽयं पश्यन्ति धीराः यतयः संयतात्मानः ।"
(३) "द, द, द" कोऽर्थः ? दमो दानं दया इति दकारत्रयं यो वेत्ति स जीवः । ...
इन वेदपदों से प्रात्मा को अस्तिता-नित्यता सिद्ध
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