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उसका उपयोग नहीं रहता है । नये पदार्थ का फिर ज्ञान होता है तब पुनः नये उपयोग रूप में वह ज्ञान उत्पन्न होता है ।
आत्मा का प्रत्येक प्रदेश ज्ञान-दर्शन के उपयोग रूप अनंत पर्यायों से युक्त है ।
वस्तु मात्र में तीन धर्म हैं ।
उत्पाद व्यय और ध्रौव्य | प्रस्तुत आत्मा के तीन स्वभाव हैं । पर्याय रूप में वह उत्पत्ति और विनाश रूप है, किन्तु द्रव्य के रूप में नित्य है । उदाहरणार्थ - यथा घट ज्ञान में जैसे पंचभूतात्मक है, अतः आत्मा में यह 'घट' है ऐसा प्रयोगात्मक ज्ञान अर्थात् पर्याय उत्पन्न होता है और जब घट का विनाश होता है या घट दूर चला जाता है, तब उसमें से उत्पन्न जो ज्ञान हे पर्याय है, उसका भी विनाश होता है | 'न प्रेत्यसंज्ञाऽस्ति' - पूर्व के घटादि उपयोग रूप संज्ञा नहीं रहती ।
आत्मा के तीन स्वभाव हैं । (१) प्रथम स्वभाव - जिस पदार्थ का विज्ञान प्रवर्त्तता हो उस विज्ञान पर्याय रूप में आत्मा उत्पन्न होता है, तद् समय ही पूर्व पदार्थ के विज्ञान पर्याय नष्ट हो जाने से पूर्व के विज्ञान पर्याय रूप में आत्मा विनश्वर रूप है और अनादिकाल से चली आ रही विज्ञान सन्तति द्वारा द्रव्यपने आत्मा अविनश्वर रूप
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