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को या अल्पज्ञानी को तो सर्व वस्तुएँ स्मरण में लानी पड़ती हैं। श्रज्ञानी को तो उसके सामने जो वस्तुएँ प्राती हैं वे दिखती हैं, लेकिन पूर्ण रूप से नहीं । दिखे या न दिखे, ऐसा भी होता है ।
आत्मा
जब घट
'घट' ऐसा ज्ञान का उपयोग कब होता है ? जब घट को देखकर घटमय बन जाता है तब । के स्थान में पट आ जाता है तब घट ज्ञान का उपयोग वाला प्रात्मा पट ज्ञान के उपयोग वाला हो जाता है । जब इसके स्थान पर और कोई तीसरी वस्तु रखो तो वही आत्मा उस वस्तु के उपयोग वाला होता है ।
इस रूप
ज्ञान-दर्शन उपयोग रूप विशिष्ट ज्ञानमय प्रात्मा भूतों के निमित्त से उत्पन्न होते हैं । यहाँ पर भूत शब्द का अर्थ पाँच भूत ही नहीं किन्तु 'प्रमेय' अर्थ भो है । अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश मात्र ही नहीं किन्तु जड़-चेतन समस्त ज्ञेयपदार्थ भूत शब्द से हैं । से आत्मा नित्य होने पर भी किसी पदार्थ के उपयोग के लिये हो तो उसे विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न कहा जाता है । उस विशिष्ट ज्ञानसम्पन्न प्रात्मा का जो उपयोग पंचभूतमय पदार्थ के ज्ञान में से उत्पन्न हुआ है, वह पंचभूतमय पदार्थ के विनाश के पश्चात् विनष्ट होता है । अर्थात्
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