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प्रात्मा की सिद्धि नहीं होती है। कारण कि ऐतिहासिक प्रमाणों में दन्तकथादिक आती हैं। जैसे-कोई जीर्ण-शीर्ण मकान है। उसमें कई वर्षों से भूतादिक का निवास है, इस तरह परम्परा से लोग जानते हुए चले आ रहे हैं । यह कहावत ऐतिहासिक प्रमाण से वंश परम्परा तक चलती हुई पाती है। किन्तु जीव-प्रात्मा के सम्बन्ध में ऐसी कोई कहावत-बात प्रचलित नहीं है जिससे कि जोव-यात्मा का निवास होने की बात आज भो मिलती हो ।
(७) आगम प्रमारण-इससे भी जीव-प्रात्मा की सिद्धि नहीं हो सकती है। क्योंकि आत्मा के सम्बन्ध में इसकी पुष्टि में शास्त्र-प्रमाण मिलते हैं। कि तु वे अात्मा के सम्बन्ध में अनेकानेक परस्पर विरोधी बातें करते हैं । जैसे-कोई शास्त्र कहता है कि 'प्रात्मा है' और कोई कहता है कि 'आत्मा नहीं है।' इस तरह परस्पर विरुद्ध कहते हुए शास्त्रों में कौन-सा शास्त्र सच्चा और कौन-सा झूठा मानना ? कोई कहता है कि 'पात्मा एक ही है', तो कोई कहता है कि 'पात्मा एक नहीं अनंत हैं।' फिर कोई प्रात्मा को क्षणिक मानता है तो कोई नित्य ही मानता है। इसलिये ऐसी परिस्थिति में कौन सा शास्त्र
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