________________
(४) अर्थापत्ति प्रमाण-इससे भी जीव-प्रात्मा की सिद्धि नहीं होती है। कारण कि-अर्थापत्ति में कोई देखी हुई या सुनी हुई वस्तु अमुक वस्तु के बिना न घट सके ऐसी होती है, तब इस वस्तु के आधार पर वह वस्तु सिद्ध हो सकती है। जैसे-देह से हृष्ट-पुष्ट ऐसे देवदत्त को देखकर किसी ने कहा कि यह भाई दिन में बिलकुल खाता ही नहीं। इससे यह सिद्ध होता है कि रात को यह अवश्य खाता होगा। इस रूप में जोव-प्रात्मा की सिद्धि करने के लिये कोई वस्तु ऐसी नहीं दिखाई देती है।
(५) सम्भव प्रमाण-इससे भी जीव-आत्मा की सिद्धि नहीं होती है। जो एक वस्तु में दूसरी वस्तु आने पर उसकी सिद्धि करे वह सम्भव प्रमाण कहा जाता हैं। जैसे-वयोवृद्ध पुरुष ने युवावस्था देखी ही है ऐसा कहा जाता है। कारण कि इतनी दीर्घ-लम्बी आयु में युवावस्था की आयु समा जाती है। किन्तु जीव-प्रात्मा किसमें समा जाता है जिससे यह कह सकें कि यह वस्तु है। आत्मा तो अवश्य ही है, ऐसी एक भी वस्तु नहीं है । इसलिए जीव-प्रात्मा की सिद्धि नहीं होती।
(६) ऐतिह्य (ऐतिहासिक) प्रमाण-इससे भी जीव
( ४० )