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इस कथन का सारांश यह है कि अनुमान प्रत्यक्षपूर्वक प्रवर्तता है । जिस मनुष्य ने पूर्व में महानस - रसोड़ा श्रादि स्थल में धुआँ और अग्नि का सम्बन्ध प्रत्यक्ष देखा हो वह मनुष्य पर्वत पर निकलते हुए धुएँ को देखकर पूर्व में प्रत्यक्ष द्वारा जाने हुए धुएँ और अग्नि के सम्बन्ध का स्मरण करता है कि जहाँ-जहाँ धुप्राँ होता है वहाँ-वहाँ पर वह्नि होती है । अग्नि पूर्व में भी देखी थी । इस पर्वत पर धुआँ है, इसलिये वह्नि अग्नि होनी चाहिये । इस तरह प्रत्यक्षपूर्वक अनुमान होता है । किन्तु इधर आत्मा के साथ तो किसी का भी सम्बन्ध प्रत्यक्ष से नहीं दिखाई देता । इसलिये अनुमान प्रमाण से जीव आत्मा की सिद्धि नहीं हो सकती ।
(३) उपमान प्रमारण - इस प्रमाण से भी जीव- प्रात्मा की सिद्धि नहीं होती । क्योंकि आत्मा के सम्बन्ध में ऐसी किसी ज्ञात वस्तु की उपमा नहीं घट सकती । उपमान समोप के पदार्थ में सादृश्य बुद्धि उत्पन्न करता है । जैसे जंगल में गये हुए मनुष्य की वहाँ पर रोझ नाम के जंगली पशु को देखकर यह सादृश्य बुद्धि होती है कि जैसी गाय होती है वैसा ही यह पशु है । आत्मा में नहीं होने से यह उपमान प्रमाण आत्मसिद्धि के लिये अनुपयुक्त होता है ।
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