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माने और किस प्रकार आत्मा की सिद्धि हो सके ? ___फिर कहते हैं कि घी, दूध इत्यादि उत्तम पदार्थों के वापरने से शरीर पुष्ट हुआ तो उसमें से सतेज ज्ञान उत्पन्न होता है, ऐसा अनुभव होता है। इसलिये मानना चाहिये कि शरीर रूप में परिणाम पाये हुए पांच भूतों में से ही ज्ञान उत्पन्न होता है। ज्ञान यह पांच भूतों का धर्म है, आत्मा का नहीं। इसलिये आत्मा नाम का पदार्थ नहीं है। इस तरह किसी भी प्रमाण से जीव-प्रात्मा नाम का पदार्थ नहीं है। ऐसा हे इन्द्रभूति ! तू मान रहा है। यह तेरा भ्रम है। वेदोक्त इस श्रुति में विज्ञानघन०' आदि पदों का जो तुमने अथ किया है वह अर्थ अयुक्त है।"
. अब इस वेदश्रुति का सच्चा अर्थ श्रा इन्द्रभूति को सर्वज्ञ विभु श्री महावीर परमात्मा नीचे प्रमाणे बता रहे हैं
* 'जीव-आत्मा है' इसकी सिद्धि * ___"विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानुविनश्यति, न प्रेत्यसंज्ञाऽस्ति" इति ।
'विज्ञानघन०' इस पद में स्थित 'विज्ञान' शब्द को
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